*तोटक छंद*
*विधान--*
*👉 यह सम वार्णिक छंद है*
*👉तोटक छंद में चार चरण होते हैं |* *प्रत्येक चरण में चार सगण (112)सहित कुल 12 वर्ण होते हैं।*
*👉 दो दो चरण समतुकान्त*
*👉पूरे छंद में केवल "सगण ✖ 4"*
*अर्थात लघु-लघु-गुरू 112 ✖ 4 का विधान क्रम रहता है*
*शीर्षक : भाव-विभाव"*
सुन लो मन की कुछ बात सखे।
वह नेह करो सब को न लखे।
मनभावन प्रीत पगी तन में।
इक हूक उठी अपने मन में।1
मुसकान छिपा कर बैठ गये।
मन में उभरे कुछ ख्वाब नये।
बिसरा न सके बतला न सके।
अरु नेह सुधा रस पी न सके।2
बदरा बरसे बिन लौट गये।
करने फिरसे अब यत्न नये।
बुझ जाय तृषा जिससे हिय की।
दब जाय व्यथा उससे जिय की।3
बन चातक सा एक साधक जो।
बन वारिद का अराधक वो।
जल अन्य पपीह नहीं चखता
बस स्वाति नक्षत्र रहे तकता।4
नभ से पहली जब बूँद गिरे।
चख के उसके फिर भाग फिरे।
मधुमास बसा तब से मन में।
इक जोश जगा उसके तन में।4
*प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 21 मई 2020*